भारतीय चुनावी व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में एक नई पहल होती दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया है, जिसके बाद चुनाव आयोग ने भी इस पर रोक लगाने का निर्णय लिया है।
इलेक्टोरल बॉन्ड क्या हैं?
इलेक्टोरल बॉन्ड एक प्रकार का वित्तीय उपकरण है जिसे राजनीतिक दान के लिए उपयोग किया जाता है। इस स्कीम का उद्देश्य चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक पाया है।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि चुनाव आयोग इस स्कीम को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग हमेशा से पारदर्शिता के पक्ष में रहा है और इस निर्णय का स्वागत करता है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की वैधानिकता पर सवाल उठाते हुए इसे असंवैधानिक घोषित किया। कोर्ट ने कहा कि इस स्कीम के तहत दान देने वालों की गोपनीयता चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता को कम करती है।
इस निर्णय के बाद, चुनाव आयोग ने तत्काल प्रभाव से इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर रोक लगाने का निर्देश जारी किया। यह कदम चुनावी फंडिंग में अधिक पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
आगे की दिशा
चुनाव आयोग ने इस निर्णय के बाद राजनीतिक दलों और दान देने वालों को चुनावी फंडिंग के नए नियमों के अनुसार अपने आचरण को ढालने की सलाह दी है। चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार चुनावी फंडिंग में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाएगा।
इस निर्णय को भारतीय चुनावी प्रणाली में एक मील का पत्थर माना जा रहा है, जो चुनावी फंडिंग में अधिक पारदर्शिता और नैतिकता की ओर एक कदम है। इससे न केवल राजनीतिक दलों के बीच, बल्कि आम नागरिकों के बीच भी विश्वास को मजबूत किया जा सकेगा।