धेमाजी (असम) (नेहा): असम के लखीमपुर से तीसरी बार सांसद के लिए चुनाव लड़ रहे प्रदान बरुआ ने खुद को ‘मौन सांसद’ कहे जाने पर साहसिक मुखौटा पहना है। उनका कहना है कि उनके क्षेत्र में विकास की गति तेज है और संसद में बिना बोले ही अगर इतना कुछ हो रहा है, तो चुप रहना ही बेहतर है।
बरुआ का दावा है कि बिना ‘तुरुप का इक्का’ (संसद में बोलना) का इस्तेमाल किए ही उन्होंने ब्रह्मपुत्र के उत्तरी तट पर स्थित अपने क्षेत्र में संपर्क और बाढ़ नियंत्रण जैसे मुख्य मुद्दों को संबोधित किया है। यह क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश से सटा है और यहाँ की समस्याओं का समाधान महत्वपूर्ण है। बरुआ ने कहा, “अगर काम बिना बोले ही हो जा रहा है तो यह बेहतर है। मुझे अपने तुरुप का इक्का फिर बचा कर रखना चाहिए। बिना मांगे ही सब कुछ मिल रहा है, इससे अच्छा क्या हो सकता है?” बरुआ के मुताबिक, उनके द्वारा चुप रहकर भी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विकास कार्य हो रहे हैं। संपर्क सुविधाएँ बढ़ी हैं और बाढ़ नियंत्रण की बेहतर व्यवस्था हुई है। सांसद ने आगे बताया कि, “बिना मेरे बोले ही अगर विकास के इतने प्रोजेक्ट्स पूरे हो रहे हैं तो मैं क्यों अनावश्यक बोलूँ? मेरा चुप रहना ही मेरे क्षेत्र के लिए ज्यादा उपयोगी साबित हुआ है।”
बता दें कि विकास के इस दौर में, बरुआ का यह कहना है कि उनका मौन रहना ही उनके लिए और उनके क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो रहा है। उनके मौन साधना का यह तरीका उनके विरोधियों को भी चुनौती दे रहा है। उनकी इस बात से यह स्पष्ट होता है कि उनकी प्राथमिकताएं क्षेत्र के विकास पर केंद्रित हैं। इस बात को उन्होंने अपनी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया है।