उत्तर प्रदेश के कानपुर से समाजवादी पार्टी के विधायक, इरफान सोलंकी को आगजनी केस में अब 22 मार्च को कोर्ट से फैसले का इंतजार है। महराजगंज जेल में बंद विधायक पर आरोप हैं कि उन्होंने आगजनी की घटनाओं में भाग लिया। उनका ट्रायल एमपी/एमएलए फास्ट ट्रैक कोर्ट में पूरा हो चुका है।
जेल से कोर्ट तक का सफर, इरफान सोलंकी के लिए केवल एक भौतिक दूरी नहीं, बल्कि एक आशाओं और आस्था का प्रतीक बन गया है। उन्होंने कोर्ट पहुंचते ही कुरान को अपने हाथ में थामे रखा, जिससे उनकी गहरी आस्था और विश्वास की झलक मिलती है।
विधायक की आस्था और आशा
इरफान सोलंकी ने अपने समर्थकों से दुआओं की अपील करते हुए कहा, “कोई बात नहीं, आप लोग मेरे लिए दुआ करना।” इस वक्तव्य से उनकी निर्भीकता और सकारात्मक दृष्टिकोण का पता चलता है। उनके इस वक्तव्य ने समाज के एक बड़े हिस्से को उनके प्रति सहानुभूति और समर्थन का भाव पैदा किया है।
कोर्ट की सुनवाई को लेकर एक अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई थी, जब एमपी-एमएलए कोर्ट के जज, सतेंद्र नाथ त्रिपाठी अवकाश पर चले गए। इससे विधायक इरफान सोलंकी और उनके समर्थकों के बीच एक आशंका का माहौल बन गया था। फिर भी, उनका मानना है कि न्याय की जीत होगी।
इरफान सोलंकी के मामले में ईडी की छापेमारी भी चर्चा का विषय रही है। लेकिन इस पर उनका कहना है कि यह सब प्रक्रिया का हिस्सा है और उन्हें किसी भी प्रकार की चिंता नहीं है।
न्याय की राह में आस्था की शक्ति
इस पूरे प्रकरण में, इरफान सोलंकी का धैर्य और उनकी आस्था उल्लेखनीय है। उनका विश्वास है कि सत्य की जीत होगी और वे न्याय के मार्ग पर अडिग रहेंगे। उनके समर्थकों का भी यही मानना है कि अंततः न्याय होगा और उनके नेता इस कठिन समय से विजयी होकर निकलेंगे।
इस घटनाक्रम से यह भी पता चलता है कि राजनीति में आस्था और न्याय का मिश्रण कैसे एक व्यक्ति की छवि और उसके समर्थन को प्रभावित कर सकता है। इरफान सोलंकी का मामला न केवल एक विधायक की कहानी है, बल्कि यह उन सभी की कहानी है जो न्याय और सच्चाई के पथ पर चलने का साहस रखते हैं।