7 मार्च को, त्रिपुरा के अगरतला से, दो युवा मन, मोबाइल फोन और 1,300 रुपये की छोटी सी पूंजी के साथ, अपने माता-पिता को बिना किसी सूचना के, एक बड़े सपने की तलाश में मुंबई की ओर चल पड़े। इन दोनों लड़कों, ओंकार चक्रवर्ती और पृथिबी देबबर्मा, के मन में था एक ही ख्वाब – ‘करियर बनाने’ का।
रास नहीं आ रही थी पढ़ाई
उनके परिवार वालों ने, बच्चों के लापता होने के बाद, अगरतला में अपहरण का केस दर्ज कराया। बच्चे, अपने पीछा किए जाने के भय से, अपने मोबाइल फोन बंद कर चुके थे। लेकिन मुंबई से एक अज्ञात नंबर से आए फोन ने उनके स्थान का पता चला दिया।
मुंबई पुलिस ने, 14 साल के इन दोनों लड़कों को, उनके परिवार से मिलवा दिया। एमआरए मार्ग पुलिस स्टेशन में लाए गए इन दोनों लड़कों ने बताया कि वे मुंबई के आकर्षण और संस्कृति से मंत्रमुग्ध थे और सोचते थे कि यह शहर उनके ‘करियर बनाने’ के सपने को साकार करने की एक आदर्श जगह है।
सपनों की नगरी में नया आरंभ
ओंकार और पृथिबी ने बताया, ‘पढ़ाई के दबाव से बचने के लिए’ वे घर से भागे थे। यह घटना न केवल उनके साहसिक कदम की कहानी है बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे युवा मन अपने सपनों को पूरा करने के लिए जोखिम उठाने को तैयार हैं। इस घटना से यह भी संकेत मिलता है कि समाज को युवाओं के करियर और शिक्षा के प्रति उनके दृष्टिकोण को समझने की आवश्यकता है।
इस घटना के समापन पर, यह स्पष्ट होता है कि सपनों की खोज में निकलना, चाहे वह कितनी भी कठिनाइयों से भरा क्यों न हो, एक व्यक्तिगत यात्रा है जिसे हर किसी को समझना चाहिए। ओंकार और पृथिबी की कहानी एक उदाहरण है कि कैसे युवा पीढ़ी अपने सपनों को साकार करने के लिए साहस और उम्मीद के साथ आगे बढ़ रही है।