चंडीगढ़ (उपासना): पंजाब के किसानों द्वारा नाड़ जलाने की प्रथा, पर्यावरणीय नियमों की अवहेलना के बावजूद जारी है। सरकार और न्यायिक निकायों द्वारा बार-बार आगाह किए जाने के बावजूद, इस कृषि प्रथा से उत्पन्न धुआँ न केवल पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा को भी खतरे में डाल रहा है।
बुधवार की घटना में, खलचियां कस्बे के किसानों ने जीटी रोड के किनारे अपने खेतों में आग लगा दी, जिससे धुएं के कारण यातायात में बाधा उत्पन्न हुई। इस आग ने न केवल यातायात को प्रभावित किया, बल्कि सड़क किनारे के पेड़ों को भी खतरे में डाल दिया।
वहीं, किसानों का कहना है कि गेहूं की पराली जलाना उन्हें अनिवार्य लगता है, क्योंकि इससे धान की खेती के लिए मिट्टी तैयार हो जाती है और पानी तथा अन्य संसाधनों की बचत भी होती है। हालांकि, इसके विकल्प के रूप में पराली का उपयोग अन्य कार्यों में किया जा सकता है, जैसे मवेशियों के लिए चारा, कम्पोस्ट खाद, बायोमास ऊर्जा, और बायो-एथेनॉल आदि।
कृषि विभाग ने भी इस समस्या के समाधान के लिए किसानों को वैकल्पिक तरीके सुझाए हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कृषि कार्य संभव हो सके। फिर भी, कुछ शरारती तत्वों द्वारा नाड़ जलाने की घटनाएं निरंतर जारी हैं, जिससे स्थिति और भी गंभीर बनती जा रही है।