जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक फिजाओं में एक बार फिर से नई करवट देखने को मिल रही है। इस बार की चर्चा का केंद्र हैं पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद, जो अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरने वाले हैं। उनका यह निर्णय राज्य की राजनीति में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार कर रहा है।
नया अध्याय, नई उम्मीदें
गुलाम नबी आजाद का यह कदम उनके राजनीतिक करियर में एक नए अध्याय की शुरुआत माना जा रहा है। वर्ष 2014 में उधमपुर से भाजपा नेता जितेंद्र सिंह के हाथों मिली हार के बाद, आजाद अब लोकसभा चुनाव में अपनी वापसी की तैयारी में हैं। इस चुनावी रणनीति के पीछे उनकी नई पार्टी, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (डीपीएपी) का मजबूत समर्थन है।
डीपीएपी के नेता ताज मोहिउद्दीन के अनुसार, पार्टी की कोर कमेटी ने इस निर्णय पर मुहर लगा दी है कि गुलाम नबी आजाद अनंतनाग-राजौरी सीट से चुनावी दंगल में उतरेंगे। इस निर्णय के पीछे आजाद की राजनीतिक दृष्टि और उनकी पार्टी की नई उम्मीदें झलक रही हैं।
राज्य की राजनीति में आजाद का यह कदम उनके विरोधियों के लिए एक चुनौती के रूप में उभर रहा है। उनकी पार्टी और अन्य सहयोगियों के साथ गठबंधन की संभावनाओं पर चर्चा के बीच, डीपीएपी के नेताओं ने स्पष्ट किया है कि फिलहाल किसी भी तरह की प्रगति नहीं हुई है। इससे यह संकेत मिलता है कि आजाद और उनकी पार्टी अपने दम पर चुनावी समर में उतरने को तैयार हैं।
आजाद के इस निर्णय से जम्मू-कश्मीर की राजनीति में नए समीकरण बनने की संभावना है। उनके अनुभव और राजनीतिक कौशल को देखते हुए यह चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प होने की उम्मीद है। उनकी पार्टी और समर्थकों में उत्साह का माहौल है, और वे इस चुनावी लड़ाई में एक नई दिशा और दृष्टिकोण की आशा कर रहे हैं।