भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ आता दिख रहा है, जहां हेमंत सोरेन के बाद अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की अटकलें तेज हो गई हैं। इस खबर ने न केवल राजनीतिक गलियारों में, बल्कि आम जनता में भी खासी चर्चा और चिंता का विषय बना दिया है।
सवाल कि क्या जेल से सरकार चलाई जा सकती है या नहीं, इस चर्चा को और भी गहराई देता है। इतिहास गवाह है कि भारतीय राजनीति में कई नेता जेल में रहते हुए भी अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभाते रहे हैं। लेकिन, क्या आधुनिक भारत में यह संभव है?
ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा जारी किए गए नोटिस को बार-बार ठुकराना, केजरीवाल की उस स्थिति को और भी जटिल बना देता है। इससे उन पर लगे आरोपों की गंभीरता और भी स्पष्ट होती है, और यह भी दर्शाता है कि कैसे राजनीतिक द्वंद्व और आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा है।
केजरीवाल की गिरफ्तारी, यदि होती है, तो न केवल दिल्ली की राजनीति पर, बल्कि भारतीय लोकतंत्र पर भी एक गहरा प्रभाव डालेगी। यह सवाल उठता है कि क्या राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में किया जा रहा है?