दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में बीजेपी के सात विधायकों के निलंबन के खिलाफ दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह मामला दिल्ली विधानसभा के बजट सत्र के दौरान उपजा था, जब इन विधायकों को कथित रूप से सदन में व्यवधान डालने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था।
न्यायालय का विचार
जस्टिस सुब्रह्मण्यम प्रसाद की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले की सुनवाई के दौरान विशेष ध्यान दिया कि विधायकों का निलंबन उनके निर्वाचन क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व को प्रभावित कर सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि विधायक जनता के प्रतिनिधि होते हैं और उनका निलंबन जनता के प्रतिनिधित्व पर प्रभाव डालता है।
सुनवाई के दौरान, विधायकों के वकील जयंत मेहता ने कोर्ट को सूचित किया कि विशेषाधिकार समिति के समक्ष उन्हें अपना जवाब देना है। कोर्ट ने इस पर विचार करते हुए विशेषाधिकार समिति को अपनी कार्यवाही स्थगित करने की सिफारिश की।
विधायकों का निलंबन और विवाद
15 फरवरी को दिल्ली विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन, उपराज्यपाल वीके सक्सेना के अभिभाषण के दौरान कुछ विधायकों द्वारा कथित रूप से टोकाटाकी करने पर विवाद उत्पन्न हुआ। इस कारण से बीजेपी के आठ में से सात विधायकों को सदन से निलंबित कर दिया गया था, जिसमें मोहन सिंह बिष्ट, अजय महावर, ओपी शर्मा, अभय वर्मा, अनिल वाजपेयी, जीतेंद्र महाजन और विजेंद्र गुप्ता शामिल हैं।
निलंबन के खिलाफ यह याचिका विधायकों द्वारा दाखिल की गई थी ताकि उनके निलंबन को चुनौती दी जा सके और उन्हें सदन में वापस लाया जा सके। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला सभी पक्षों के लिए महत्वपूर्ण होगा।
अंततः, दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला न सिर्फ विधायकों के निलंबन के भविष्य पर प्रभाव डालेगा, बल्कि यह विधानसभा में व्यवधान और प्रतिनिधित्व के अधिकारों को लेकर भविष्य के मामलों के लिए भी एक मानक स्थापित करेगा। इस निर्णय का इंतजार सभी संबंधित पक्षों द्वारा बेसब्री से किया जा रहा है।