सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश के कार्यकाल की गंभीर आलोचना की। इस आलोचना का मुख्य बिंदु था, रिटायरमेंट के पांच महीने बाद फैसला सुनाना, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गलत और अनुचित ठहराया।
न्याय की देरी पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, न्यायिक प्रक्रिया में देरी न्याय के सिद्धांत को कमजोर करती है। रिटायरमेंट के बाद केस की फाइलों को अपने पास रखना, जिससे फैसले में विलंब हो, न सिर्फ अनुचित है बल्कि यह न्याय प्रक्रिया में बाधा भी उत्पन्न करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी जोर दिया कि न्यायाधीशों को अपने पद की गरिमा और जिम्मेदारियों का पूरा सम्मान करना चाहिए। उन्होंने इसे न्यायिक प्रणाली में विश्वास बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया।
न्यायिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता
इस घटना ने न्यायिक प्रणाली में सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित किया है। न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने और ऐसी अनुचित प्रथाओं को रोकने के लिए कठोर नियमों और दिशा-निर्देशों की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट की इस आलोचना को न्यायिक जगत में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो आगे चलकर न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने में सहायक होगा। न्यायिक प्रक्रिया में सुधार और तेजी लाने के लिए इसे एक जागरूकता पहल के रूप में देखा जा सकता है।
समाज में न्याय के प्रति विश्वास और सम्मान बनाए रखने के लिए, इस तरह की आलोचनाओं और सुधारों को समय-समय पर आवश्यक माना जाता है। न्याय प्रक्रिया में तेजी और पारदर्शिता सुनिश्चित करना हर न्यायाधीश और न्यायिक प्रणाली की प्राथमिक जिम्मेदारी है।