बाड़मेर (उपासना)- भारत-पाक सीमा पर स्थित राजस्थान के बाड़मेर जिले का रामसर गांव अपने जल संरक्षण की अनूठी विधियों के लिए जाना जाता है। यहां के ग्रामीण समुदाय परंपरागत कुओं की मदद से अपनी जल आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं। पश्चिमी राजस्थान में, जहां अकाल एक आम बात है, रामसर के लोगों ने जल संरक्षण की एक मिसाल कायम की है।
रामसर में लगभग 100 से अधिक कुएं हैं, जिन्हें ‘बेरियां’ कहा जाता है। ये बेरियां न केवल ग्रामीणों की प्यास बुझाती हैं, बल्कि कृषि और अन्य दैनिक गतिविधियों के लिए भी पानी प्रदान करती हैं। इन कुओं को भरने के लिए सोनिया चैनल का निर्माण किया गया है, जो करीब 2 किमी दूर स्थित पहाड़ों से पानी लाता है।
प्रत्येक बूंद की कीमत समझते हुए, रामसर के निवासी पानी को संग्रहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इस जल संग्रहण तंत्र को और अधिक कुशल बनाने के लिए गांव में कई जल संरक्षण परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। इस पहल से न केवल जल संकट से निपटने में मदद मिली है, बल्कि यह आस-पास के इलाकों के लिए भी एक उदाहरण बन गया है।
बाड़मेर की यह जल संरक्षण पद्धति न केवल पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देती है, बल्कि सामाजिक एकजुटता को भी मजबूत करती है। गांव के लोग साझा संसाधनों का प्रबंधन करते हुए आपस में मिलजुल कर काम करते हैं, जो उनके सामूहिक प्रयासों की मिसाल है। इस प्रकार, रामसर गांव न केवल अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है, बल्कि एक स्थायी भविष्य की दिशा में भी अग्रसर है।