हिमाचल प्रदेश की वित्तीय स्थिति चिंताजनक मोड़ पर पहुंच गई है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हाल ही में विधानसभा में अपने सरकार का दूसरा बजट प्रस्तुत किया, जिसमें राज्य के कुल बजट के मुकाबले 22% अधिक कर्ज का खुलासा हुआ।
हिमाचल का आर्थिक दबाव
राज्य पर कुल 83 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है, जो कि विकास के लिए आवंटित फंड्स पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है। मुख्यमंत्री ने बताया कि इस भारी कर्ज के चलते, सैलरी और ब्याज चुकाने के बाद राज्य के पास विकासात्मक कार्यों के लिए धन नहीं बचता।
हिमाचल प्रदेश के लोगों को यह जानकारी चिंता में डाल रही है। राज्य की सरकार ने अगले वित्त वर्ष के लिए 58 हजार 444 करोड़ रुपए का बजट पेश किया है, जिस पर अगले पांच दिनों तक चर्चा होगी। 29 फरवरी को इस बजट को पारित किया जाएगा, जिसमें वित्तीय रणनीति और कर्ज के प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
राज्य सरकार इस आर्थिक संकट से उबरने के लिए कई उपायों पर विचार कर रही है। इसमें विकासात्मक प्रोजेक्टों के लिए धनराशि की उपलब्धता बढ़ाने के लिए अन्य स्रोतों से धन जुटाना शामिल है। सरकार का ध्यान विशेषकर उन क्षेत्रों पर है, जहां निवेश से राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है।
हिमाचल प्रदेश के वित्तीय प्रबंधन में इस बढ़ते कर्ज का मुद्दा एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। सरकार के सामने इस चुनौती का सामना करने और राज्य की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने का दायित्व है। इसके लिए व्यापक रणनीति और दूरदर्शी नीतियों की आवश्यकता है।
आने वाले दिनों में, हिमाचल प्रदेश सरकार की प्राथमिकताएं और नीतियां इस बजट चर्चा के दौरान स्पष्ट होंगी। राज्य के लोगों और विश्लेषकों की निगाहें इस पर टिकी हुई हैं कि सरकार कैसे इस आर्थिक चुनौती का सामना करेगी और राज्य के विकास के लिए कौन से कदम उठाए जाएंगे।