हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार एक बड़े संकट का सामना कर रही है। राज्यसभा चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग के बाद, पार्टी में आंतरिक खींचतान सतह पर आ गई है, जिससे सरकार की स्थिरता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कुर्सी तक खतरे में पड़ गई है।
हिमाचल में कांग्रेस की कसौटी
कांग्रेस आलाकमान ने स्थिति को संभालने के लिए डीके शिवकुमार और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पर्यवेक्षक बनाकर शिमला भेजा। इन पर्यवेक्षकों ने शिमला के सिसिल होटल में विधायकों से मुलाकात की और उनकी राय ली। यह बैठकें गुरुवार को हुईं, और पर्यवेक्षकों ने तय किया कि वे अपनी रिपोर्ट कांग्रेस हाईकमान को भेजेंगे।
मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने पर्यवेक्षकों से मुलाकात के बाद लगभग साढ़े नौ घंटे की लंबी चुप्पी के बाद अपना इस्तीफा वापस ले लिया। इस कदम ने सरकार के भीतर उत्पन्न हो रही अस्थिरता को कुछ हद तक थामने का काम किया।
इस घटनाक्रम की शुरुआत सुबह 8 बजे हुई जब पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अगुआई में भाजपा विधायकों ने राज्यपाल से मुलाकात की और सरकार के खिलाफ फ्लोर टेस्ट की मांग की। इसके बाद, विधानसभा में बजट सत्र के दौरान भारी हंगामा हुआ, जिसके चलते स्पीकर को कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
दोपहर में, स्पीकर ने पूर्व CM जयराम ठाकुर समेत 15 विधायकों को सस्पेंड कर दिया, लेकिन इन विधायकों ने बाहर जाने से इनकार कर दिया। इस बीच, राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को वोट देने वाले कांग्रेस के 6 बागी विधायकों पर विधानसभा अध्यक्ष ने फैसला सुरक्षित रखा।
शाम को राज्यसभा चुनाव के नतीजों और आंतरिक राजनीति के चलते उत्पन्न हुए इस संकट के बीच, विक्रमादित्य सिंह का इस्तीफा वापस लेना एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इससे कांग्रेस सरकार के लिए एक नई उम्मीद की किरण जगी है।