मुंबई (अप्सरा): शिवसेना के अंदरूनी घमासान की एक नई कहानी सामने आई है, जहाँ पार्टी के आधार स्तम्भ बालासाहेब ठाकरे और उनके सहयोगी बलवंत मंत्री के बीच मतभेद उजागर हो रहे हैं। यह मामला उस समय का है जब शिवसेना की सन् 1966 में स्थापना के बाद महज एक वर्ष ही बीता था और इसके निर्माण के पीछे मुख्य विचारधारा बालासाहेब ठाकरे की थी।
प्रसिद्ध पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने अपनी किताब ‘जय महाराष्ट्र’ में वर्णित किया है कि कैसे दादर में एक बड़ी बैठक के दौरान, बलवंत मंत्री द्वारा शिवसेना को एक लोकतांत्रिक ढंग से चलाने की बात कहने पर उन्हें शिवसैनिकों द्वारा बुरी तरह पीटा गया। यह घटना इस बात की प्रतीक है कि कैसे आंतरिक मतभेद और विचारों की भिन्नता उग्र रूप ले सकती है। इस विवाद के केंद्र में था पार्टी की दिशा और इसके नियंत्रण का मुद्दा। जब बलवंत मंत्री ने सुझाव दिया कि पार्टी को किसी एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रित करने के बजाय एक लोकतांत्रिक संरचना में चलाया जाना चाहिए, तो कुछ शिवसैनिकों ने इसे बालासाहेब के विरोध के रूप में लिया।
घटना के दौरान, बलवंत मंत्री को मंच से खींचकर नीचे लाया गया और उन्हें जूतों से पीटा गया, उनके कपड़े फाड़े गए और उनके चेहरे व शरीर पर कालिख पोत दी गई। इस अपमानजनक घटना के बाद, बलवंत मंत्री बालासाहेब के पैरों पर गिर पड़े और उनसे माफी मांगने लगे। यह घटना शिवसेना के अंदरूनी संघर्ष को उजागर करती है और यह भी दिखाती है कि कैसे पार्टी के नेतृत्व और दिशा को लेकर मतभेद हो सकते हैं। इसके अलावा, यह भी संकेत मिलता है कि कैसे विचारधारा और नियंत्रण के मुद्दे पर तीव्र प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं।
इस घटना ने पार्टी में एक गहरी दरार पैदा कर दी, जिससे आगे चलकर और भी विवादों का जन्म हुआ। यह विवाद और संघर्ष शिवसेना के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गया। इससे पार्टी के भीतरी ढांचे में भी बदलाव आया और नए नेतृत्व की ओर इशारा किया गया। इस तरह की घटनाएँ पार्टी के भीतरी संरचना और विचारधारा को मजबूती से प्रभावित करती हैं, और यह भी स्पष्ट करती हैं कि आंतरिक मतभेद और विवाद कैसे सामने आ सकते हैं और पार्टी की दिशा को नया मोड़ दे सकते हैं।