रईया (हरमीत) : डेरा राधा स्वामी सत्संग ब्यास के प्रमुख बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों ने सोमवार को 45 वर्षीय डाॅ. जसदीप सिंह गिल ने अपने उत्तराधिकारी की घोषणा की। डेरा ब्यास द्वारा लिए गए इस अप्रत्याशित फैसले से देशभर की डेरा संगतें हैरान और निराश हैं। हालांकि बाद में डेरे ने इस पर सफाई दी। बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों गुरता गद्दी पर रहेंगे।
सोमवार को डेरा ब्यास ने अपने सभी सेवा प्रभारियों व केंद्रों को पत्र जारी कर कहा कि राधा स्वामी सत्संग ब्यास के संरक्षक बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों पुत्र सुखदेव सिंह गिल, डाॅ. जसदीप सिंह गिल को राधा स्वामी सत्संग ब्यास सोसायटी का संरक्षक मनोनीत किया गया है। 2 सितम्बर 2024 से तत्काल प्रभाव से डाॅ. जसदीप सिंह गिल राधा स्वामी सत्संग ब्यास सोसायटी के संत सतगुरु बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों की जगह लेंगे। पत्र के मुताबिक, उन्हें अपने नाम पर दान देने का भी अधिकार होगा। पत्र में बाबा गुरिंदर ढिल्लों ने कहा कि हुजूर महाराज के बाद उन्हें संगत से अपार समर्थन और प्यार मिला है, उनकी इच्छा और अपील है कि संगत को भी ऐसा ही प्यार और समर्थन मिलता रहे। जसदीप सिंह गिल को भी पुरस्कार दिया जाना चाहिए।
इस पत्र व समाचार के सार्वजनिक होते ही देश-दुनिया में डेरा ब्यास समुदाय का मोहभंग हो गया। ऐसी घोषणा के बाद डेरा में सत्संग के निर्धारित कार्यक्रम से ठीक चार-पांच दिन पहले इंटरनेट मीडिया पर बाबा गुरिंदर सिंह के स्वास्थ्य को लेकर तरह-तरह की अफवाहें और भ्रामक सूचनाएं फैलने लगीं। बड़ी संख्या में संगत डेरा के लिए रवाना हुई।
इसे देखते हुए डेरा ने शाम को एक संदेश जारी कर कहा कि संदेश के मुताबिक, बाबा गुरिंदर सिंह स्वस्थ हैं और राधा स्वामी ब्यास के गुरु बने रहेंगे। गुरु गद्दी हस्तांतरण पर दस्तारबंदी जैसा कोई कार्यक्रम नहीं है। डॉ। जसदीप सिंह गिल के साथ बैठेंगे और बाबा गुरिंदर सिंह की निगरानी में रहेंगे। हालाँकि, सभी विदेशी सत्संगों का संचालन नए महाराज द्वारा किया जाएगा। संदेश में तीर्थयात्रियों को बताया गया कि डेरा ब्यास की ओर भागने की कोई जरूरत नहीं है। बाबा गुरिंदर सिंह और उनके शिष्य एक साथ सत्संग केंद्रों का दौरा करेंगे। श्रद्धालुओं से किसी भी अफवाह पर विश्वास नहीं करने और शिविर में भीड़ नहीं लगाने की अपील की गयी।
बता दें कि बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों कैंसर और दिल की बीमारी से पीड़ित हैं। कुछ साल पहले उन्होंने कैंसर का लंबे समय तक इलाज कराया, लेकिन बाद में वे ठीक हो गए और पहले की तरह शिविर की गतिविधियों में भाग लेने लगे।