हिसार (किरण): विधानसभा चुनाव में तेजी से समीकरण बदले हैं। जिले में मौजूद सात विधानसभा में बरवाला-उकलाना पर सभी की नजर है। कारण है बरवाला से आज तक कोई भी दूसरी बार विधायक नहीं बना है। बरवाला विधानसभा के मतदाता ने हमेशा ही नया विधायक चुनकर विधानसभा में भेजा है।
वहीं, बरवाला और उकलाना दोनों विधानसभा में भाजपा जीत नहीं पाई है। अब दोनों विधानसभा में भाजपा ने जहां नए चेहरे दिए है वहीं कांग्रेस अपने पुराने विधायकों पर दांव खेले हुए हैं। चुनाव में बरवाला और उकलाना सीट पर काफी अहम कहीं जाती है। इन दोनों सीट पर कांग्रेस, जजपा, इनेलो का कब्जा रहा है। बरवाला विधानसभा सीट को देखे तो यह हरियाणा बनने के साथ ही इस पर चुनाव हो रहे हैं।
पुरानी सीट होने के कारण 1967 और 1968 में दोनों चुनाव कांग्रेसी प्रत्याशी ने जीता था। मगर यह सीट किसी भी नेता को दोबारा रास नहीं आई है। इस सीट के मतदाता काफी अलग सोचते हैं। विकास को लेकर नई सोच के साथ मतदाता ने हर बार नए विधायक को विधनसभा में भेजा।
जिले में मौजूद सभी सातों में ऐसी सीट है जिस पर दूसरी बार विधायक नहीं बना। इस लिए इस बार का चुनाव भी काफी अलग रहेगा।
भाजपा ने इस सीट को हासिल करने के लिए नई रणनीति के तहत नलवा के पूर्व विधायक रणबीर गंगवा को यहां से उतारा हैं। कांग्रेस इस सीट पर पूर्व विधायक रामनिवास घोड़ेला को उतारा है। वहीं इनेलो भी इस सीट को पाना चाहती है। उनकी तरफ से समाजसेवी संजना सातरोड को यहां पर टिकट दी गई है।
उकलाना और बरवाला दोनों विधानसभा ऐसी है जहां पर भाजपा का प्रत्याशी एक बार भी नहीं जीत पाया है। भाजपा ने इस सीट को लेकर बनाई रणनीति से वह कितनी कामयाब होगी। उकलाना में भी दो बार से लगातार विधायक रहे अनूप धानक को टिकट दी गई है। लेकिन वहां पर भाजपा के स्थानीय नेताओं को पसंद नहीं आए है। बरवाला में गंगवा को स्थानीय नेताओं का साथ मिला है।
बरवाला सीट से 1996 में निर्दलीय प्रत्याशी रेलूराम ने जीत हासिल की थी। उनकी जीत का अंतर भी काफी रहा था। रेलूराम ने नारा दिया था रेलूराम की रेल चली बिन पानी बिन तेल चली। यह नारा उस समय काफी ज्यादा फेमस हुआ था। चुनाव में उसका असर देखने को मिला था।
बरवाला सीट से दो विधायक ऐसे रहे जो बाद में हिसार लोकसभा में सांसद बनकर भी गए। इसमें 1987 में जीते सुरेंद्र बरवाला और 2000 में जीते जय प्रकाश रहे। जय प्रकाश के अलावा उनके भाई भी इस सीट से विधायक रहे हैं।