नई दिल्ली (नेहा):वाराणसी के विभिन्न मंदिरों से साईं बाबा की मूर्तियों को हटाने का सिलसिला जारी है। सबसे पहले काशी के बड़ा गणेश मंदिर से साईं बाबा (Sai Baba) की मूर्ति हटाई गई, इसके बाद पुरुषोत्तम मंदिर से भी मूर्ति को हटा दिया गया। अब तक वाराणसी के लगभग 10 मंदिरों से साईं प्रतिमाएं हटाई जा चुकी हैं। इस कार्रवाई की पहल सनातन रक्षक दल की ओर से की जा रही है। सनातन रक्षक दल के सदस्यों का कहना है कि अब तक उन्होंने अज्ञानतावश साईं बाबा की पूजा की, लेकिन शास्त्रों के अनुसार किसी भी मंदिर में मृत मनुष्यों की मूर्ति की पूजा वर्जित है। दल का कहना है कि केवल पंच देवताओं (सूर्य, विष्णु, शिव, शक्ति और गणपति) की मूर्तियों की ही मंदिरों में स्थापना और पूजा की जा सकती है। इसलिए, अब सम्मानपूर्वक मंदिर प्रबंधन की अनुमति के बाद साईं मूर्तियों को हटा रहे हैं।
साईं पूजा को लेकर पहले भी कई विवाद हुए हैं। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भी साईं पूजा का विरोध किया था। हाल ही में बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री ने भी साईं बाबा को केवल महात्मा के रूप में पूजा जाने की बात कही, लेकिन परमात्मा के रूप में पूजा करने का विरोध किया। सनातन रक्षक दल ने साईं मूर्तियों को हटाने के लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनाई है। मूर्तियों को पूरे सम्मान के साथ कपड़े में लपेटकर हटाया जा रहा है ताकि किसी की भावनाएं आहत न हों।
वहीं, सनातन रक्षक दल का कहना है कि आने वाले दिनों में वाराणसी के अन्य मंदिरों से भी साईं मूर्तियां हटाई जाएंगी और यह कार्य मंदिर प्रबंधन की अनुमति से ही होगा। विरोध करने वाले लोगों का मानना है कि साईं बाबा का असली नाम ‘चांद मियां’ था और वे मुस्लिम थे। इससे पहले भी कई धर्मगुरुओं ने साईं पूजा पर सवाल उठाए हैं। विरोधियों का कहना है कि साईं बाबा को महात्मा के रूप में सम्मान दिया जा सकता है, लेकिन उन्हें मंदिरों में भगवान की तरह स्थापित कर पूजा करना सही नहीं है।