नई दिल्ली (किरण): गुजरात में देश का एक अनोखा गांव है। इस गांव में किसी घर में खाना नहीं बनता है। खास बात यह है कि इस गांव में बुजुर्गों की संख्या भी काफी है। पहले इस गांव में 1100 लोगों की आबादी थी। मगर नौकरी पेशा के चक्कर में लोगों ने पलायन किया। अब यहां महज 500 लोग रहते हैं। मगर पूरे देश में यह गांव एक अद्भुत उदाहरण बना है। आइए जानते हैं गुजरात के इस गांव की कहानी। गुजरात के मेहसाणा जिले में पड़ता है अनोखा गांव चंदनकी। इस गांव के किसी भी घर में खाना नहीं बनाया जाता है। गांव में एक सामुदायिक रसोई है। यहीं पर पूरे गांव का खाना बनता है। खाने के बहाने गांव के लोग यही पर जुटते हैं। एक-दूसरे से मिलते और बातें करते हैं। इस सामुदायिक रसोई की वजह से बुजुर्गों में अकेलापन दूर करने में काफी हद तक मदद मिली है।
ग्रामीणों का खाना किराये के रसोइयां तैयार करते हैं। इन्हें हर महीने 11 हजार रुपये का वेतन दिया जाता है। वहीं खाने के बदले ग्रामीण दो हजार रुपये मासिक भुगतान करते हैं। ग्रामीणों को खाना वातानुकूलित हॉल में परोसा जाता है। सामुदायिक रसोई को बनाने में गांव के सरपंच पूनमभाई पटेल का अहम योगदान रहा है। आज इस गांव की सामुदायिक रसोई को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। समुदाय रसोई के एसी हॉल में एक साथ 35-40 लोगों के भोजन करने की व्यवस्था है। दोपहर के भोजन में दाल, चावल, चपाती, सब्जी और मिठाई दी जाती है। रात में खिचड़ी-कढ़ी, भाकरी-रोटी-सब्जी, मेथी गोटा, ढोकला और इडली-सांभर की व्यवस्था होती है। चंदनकी गांव के करीब 300 परिवार अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में बसे हैं।