नई दिल्ली (जसप्रीत): सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को न्याय की देवी की नई प्रतिमा लगाई गई। न्याय की देवी की मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गई है और उसके एक हाथ में तलवार की जगह संविधान ने ले ली है। ताकि यह संदेश दिया जा सके कि देश में कानून अंधा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में जजों के पुस्तकालय में ये मूर्ति लगाई गई है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट और न्याय व्यवस्था पारदर्शिता की ओर कदम बढ़ा रही है। लगातार यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि न्याय सभी के लिए है न्याय के समक्ष सब बराबर हैं और कानून अब अंधा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में बदलाव हुआ है न्याय की देवी की आंखों की पट्टी हट गई है और इसके अलावा उसके हाथ से तलवार भी हटा दी गई है।
अब न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में पुस्तक है जो संविधान जैसी दिखती है। इसके अलावा एक और बड़ा बदलाव हुआ है दशहरे की छुट्टियों में सुप्रीम कोर्ट के सामने तिलक मार्ग पर एक बड़ी वीडियो वॉल लग गई है जिसमें हर समय सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस क्लॉक चलती है जिससे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की रियल टाइम जानकारी जानी जा सकती है। खुली आंखों से समानता के साथ न्याय करने का संदेश देने वॉला यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट की जजेस लाइब्रेरी में लगी न्याय की देवी की प्रतिमा में हुआ है। जजेस लाइब्रेरी में न्याय की देवी की एक बड़ी सी नई प्रतिमा लगी है जिसकी आंखों से पट्टी हटा दी गई है। इसके अलावा नई प्रतिमा के हाथ में तलवार भी नहीं है। नई मूर्ति के एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार की जगह एक पुस्तक है जो कानून की किताब या संविधान जैसी दिखती है हालांकि उस पर संविधान नहीं लिखा है। नई प्रतिमा से बराबरी के व्यवहार से संतुलित न्याय का संदेश बुलंद होता है। यह संदेश जाता है कि कानून अंधा नहीं है।