पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक गंभीर मुद्दे को उठाया है। सोमवार को, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने आधार कार्डों के बड़े पैमाने पर अचानक डिएक्टिवेशन की घटना को सामने रखा। इस घटना ने न केवल राज्य में चिंता का विषय उत्पन्न किया है, बल्कि लोकतंत्र और न्याय के सिद्धांतों की उल्लंघना की भी आशंका जताई गई है।
अनुसूचित जातियों पर प्रभाव
ममता बनर्जी के पत्र में विशेष रूप से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और ओबीसी समुदायों पर इसके प्रभाव को उजागर किया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कार्रवाई न केवल नियमों के खिलाफ है, बल्कि यह सामाजिक न्याय के मूलभूत सिद्धांतों का भी उल्लंघन करती है।
बिना किसी पूर्व सूचना या जांच के आधार कार्डों को डिएक्टिवेट करने की यह प्रक्रिया न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह उन लाभार्थियों के लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण है जो सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए अपने आधार कार्ड पर निर्भर करते हैं।
जनता का रुख
ममता बनर्जी के अनुसार, इस कार्रवाई से राज्य के लोगों में गहरा असंतोष और आक्रोश उत्पन्न हुआ है। उन्होंने इसे लोकतंत्र के खिलाफ एक कदम के रूप में देखा है, जो कि विशेष रूप से लोकसभा चुनावों से पहले लोगों में दहशत पैदा करने के इरादे से किया गया प्रतीत होता है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि इस प्रकार की कार्रवाई से नागरिकों के अधिकारों का हनन होता है और यह विश्वास की कमी को दर्शाता है। ममता बनर्जी ने सरकार से इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने और इसे सुलझाने की मांग की है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने इस समस्या का सामना करने के लिए GOWB पोर्टल की शुरुआत की है, जहां लोग अपनी शिकायतें दर्ज कर सकते हैं। मुख्यमंत्री का कहना है कि वे उन लोगों को अलग से कार्ड प्रदान करेंगे जिनके आधार कार्ड डिएक्टिवेट कर दिए गए हैं, ताकि कोई भी व्यक्ति इस प्रक्रिया में पीछे न छूटे।
ममता बनर्जी की यह पहल न केवल राज्य के लोगों के लिए एक सहारा प्रदान करती है, बल्कि यह सरकारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग भी करती है। उनका यह कदम समाज के सबसे कमजोर वर्गों की रक्षा करने के उनके संकल्प को दर्शाता है।