रांची में इन दिनों होली के रंग और गुलाल एक नए अंदाज में तैयार किए जा रहे हैं, जो केमिकल्स से मुक्त हैं। इसके लिए फलों का पल्प, पान के पत्ते और मुल्तानी मिट्टी का इस्तेमाल हो रहा है। यहाँ के स्थानीय उद्यमी और कारोबारी इन नेचुरल इंग्रेडिएंट्स से बने रंगों को बड़े पैमाने पर तैयार और वितरित कर रहे हैं।
फल-फूलों से बने रंग
गुलाल बनाने की प्रक्रिया में चुकंदर, पालक, हल्दी, और गेंदा जैसे प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त रस को आरारोट पाउडर के साथ मिलाया जाता है। इस प्रकार, चुकंदर से गुलाबी, पालक से हरा, और हल्दी तथा गेंदा से पीला रंग तैयार किया जाता है। इस अभिनव पद्धति से बने रंग न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छे हैं बल्कि त्वचा के लिए भी सुरक्षित हैं।
हर्बल रंगों का विकास
इस नए ट्रेंड का आगाज रांची के एक स्थानीय कारोबारी, अंशुल गुप्ता ने किया। उन्होंने लगभग पांच साल पहले फल, फूल, पान के पत्तों, और मुल्तानी मिट्टी से रंग और गुलाल बनाने की इस परियोजना की शुरुआत की। उनके इस प्रयास में स्थानीय महिलाओं का भी बड़ा योगदान रहा है, जिसने इस कार्य को और भी विशेष बना दिया है।
ऑर्गेनिक रंगों की बढ़ती मांग
अंशुल गुप्ता के इस नवाचार ने न सिर्फ स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बनाई है। दिल्ली की एक कंपनी ने उनसे 5 लाख से अधिक का ऑर्डर दिया है, जो इस बात का प्रमाण है कि ऑर्गेनिक उत्पादों की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे स्थानीय आर्थिक विकास में भी सहायता मिल रही है।
आगे की राह
आज, रांची से बाहर भी अंशुल गुप्ता के बनाए गए रंग और गुलाल की डिमांड है। उनके उत्पाद अब हरियाणा, दिल्ली, पंजाब जैसे राज्यों में भी बेचे जा रहे हैं। उनके इस प्रयास ने न सिर्फ एक स्थानीय बिजनेस को राष्ट्रीय पहचान दी है बल्कि एक स्वस्थ और हरित होली मनाने की दिशा में एक नई राह भी दिखाई है।