19 नवंबर 1977 को इजराइल के डेविड बेंगुरिअन एयरपोर्ट पर एक ऐतिहासिक पल अंकित हुआ जब मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात शांति के मिशन पर वहां पहुंचे। यह क्षण इतिहास में अभूतपूर्व था, क्योंकि पहली बार कोई अरब नेता इजराइल की धरती पर कदम रख रहा था। सादात का यह कदम इजराइल-मिस्र के बीच आगामी शांति समझौते की नींव रखने जा रहा था, जिसे अमेरिका के मध्यस्थता में 1978 में अंजाम दिया गया। यह समझौता न केवल दो दुश्मन देशों को दोस्ती की ओर ले गया, बल्कि इसने दोनों देशों के नेताओं को नोबेल शांति पुरस्कार से भी नवाजा।
ऐतिहासिक दौरे की महत्वपूर्ण भूमिका
इस दौरे के दौरान, सादात ने इजराइल-मिस्र संबंधों में सुधार की दिशा में पहला कदम उठाया। उनकी यह पहल दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही दुश्मनी को खत्म करने की दिशा में एक उम्मीद की किरण थी। अमेरिका द्वारा कराए गए इस समझौते ने न केवल शांति की एक नई संभावना प्रस्तुत की, बल्कि इसने दुनिया को दिखाया कि दुश्मनी और युद्ध की जगह शांति और समझौते भी संभव हैं।
एक राष्ट्रपति की त्रासदी
6 अक्टूबर 1981 का द दिन मिस्र के इतिहास में एक काला दिवस के रूप में दर्ज हुआ, जब राष्ट्रपति अनवर सादात की परेड देखते समय उनपर हत्या का प्रयास हुआ। मिस्र में विजय दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस परेड में सादात पर 34 गोलियां चलाई गईं, जिसके चलते उनकी मौत हो गई। इस हमले के पीछे मिस्र की सेना के लेफ्टिनेंट खालेद इस्लामबोली थे, जिन्होंने इस घातक हमले की अगुवाई की।
इस घटना ने न केवल मिस्र बल्कि पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। सादात की मृत्यु ने उनके शांति मिशन और इजराइल-मिस्र समझौते के महत्व को और भी प्रबलित किया। उनकी मृत्यु ने यह दिखाया कि शांति की राह में कितनी बड़ी कुर्बानियां दी जाती हैं और यह भी कि किस प्रकार एक व्यक्ति का दृढ़ संकल्प इतिहास को बदल सकता है।
अनवर सादात की मृत्यु के बाद, उनकी विरासत और उनके द्वारा किए गए शांति प्रयासों को विश्व भर में सराहा गया। उनका निधन शांति और समझौते की ओर उनके अटूट समर्पण का प्रतीक बन गया।
इस घटना ने सिद्ध किया कि शांति की राह में आने वाली चुनौतियाँ कितनी भी विशाल क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों तो इतिहास रचा जा सकता है। अनवर सादात का जीवन और उनकी मृत्यु दोनों ही विश्व शांति के लिए किए गए उनके अथक प्रयासों की गवाही देते हैं। वर सादात की मृत्यु के बाद, मिस्र और इजराइल के बीच शांति समझौता उनकी सबसे बड़ी विरासत के रूप में रहा। उनके निधन ने दुनिया को एक ऐसे नेता की याद दिलाई, जिसने अपने देश और दुनिया की बेहतरी के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। उनकी मृत्यु ने यह भी दिखाया कि शांति की राह हमेशा खतरों से भरी होती है, लेकिन साथ ही यह भी सिखाया कि इन्हीं खतरों के बीच शांति के असली नायक जन्म लेते हैं।
सादात की दूरदर्शिता और उनके शांति प्रयासों को आज भी विश्व भर में सराहा जाता है। उनकी मृत्यु ने मिस्र और इजराइल के बीच न केवल एक ऐतिहासिक समझौते को जन्म दिया, बल्कि इसने वैश्विक राजनीति में शांति और सह-अस्तित्व की नई संभावनाओं को भी खोला। उनका जीवन और उनकी मृत्यु दोनों ही आने वाली पीढ़ियों के लिए शांति की खोज में साहस और दृढ़ता की मिसाल बन गए हैं।
अनवर सादात: एक ऐतिहासिक शांति दूत की त्रासदी
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