मुंबई: गुरुवार की प्रारंभिक व्यापार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 83.33 पर स्थिर रहा। इसका मुख्य कारण मजबूत अमेरिकी मुद्रा और कच्चे तेल की ऊंची कीमतें हैं।
विदेशी मुद्रा व्यापारियों का कहना है कि सकारात्मक इक्विटी बाजारों और विदेशी निधियों के प्रवाह ने भारतीय मुद्रा की गिरावट का विरोध किया।
इंटरबैंक विदेशी मुद्रा में, रुपया 83.32 पर खुला और प्रारंभिक सौदों में ग्रीनबैक के मुकाबले पिछले बंद स्तर 83.33 पर और नीचे चला गया।
रुपया की स्थिरता के पीछे के कारण
विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिकी डॉलर की मजबूती और वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें मुख्य कारक हैं जिन्होंने रुपये पर दबाव डाला। हालांकि, भारतीय शेयर बाजारों में सकारात्मक रुझान और विदेशी निवेशकों की आवक ने इस दबाव को कुछ हद तक कम किया।
बाजार विश्लेषकों का मानना है कि अगर वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर में कमजोरी आती है और कच्चे तेल की कीमतें स्थिर रहती हैं, तो रुपये में सुधार हो सकता है।
इसके अलावा, भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत आधार और सरकार द्वारा विदेशी निवेशकों के लिए उदार नीतियों की पेशकश भी रुपये को सहारा प्रदान कर सकती है।
आने वाले दिनों में, बाजार की दिशा वैश्विक वित्तीय बाजारों की प्रतिक्रिया, कच्चे तेल की कीमतों और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतिगत घोषणाओं पर निर्भर करेगी।
वित्तीय विश्लेषकों का सुझाव है कि निवेशकों को वैश्विक घटनाओं पर नजर रखनी चाहिए और मुद्रा बाजारों में उतार-चढ़ाव के लिए तैयार रहना चाहिए।
रुपये की वर्तमान स्थिरता और भविष्य के प्रदर्शन पर नजर रखते हुए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि मुद्रा बाजार विभिन्न घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारकों के प्रभाव में है। अतः, निवेशकों को सावधानीपूर्वक निर्णय लेने और बाजार के रुझानों पर गहराई से नजर रखने की आवश्यकता है।