भारतीय योग गुरु बाबा रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ चल रहे ‘भ्रामक विज्ञापन’ मामले में नवीनतम विकास के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने दोनों से एक एफिडेविट दाखिल करने को कहा है। इस मामले में, कोर्ट की बेंच जिसमें जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह शामिल हैं, ने पिछली सुनवाई के दौरान नोटिस का जवाब न देने पर फटकार लगाई थी।
विज्ञापन के विवाद में नया मोड़
कोर्ट ने रामदेव से कहा कि वे कोर्ट के समक्ष पेश होकर अपना पक्ष रखें। जब वकील ने कहा कि रामदेव कोर्ट में ही मौजूद हैं, तो जज ने उन्हें कॉल करने का निर्देश दिया ताकि वे सीधे उनसे सवाल कर सकें। इस दौरान, पतंजलि आयुर्वेद ने कोर्ट से अपनी गलती के लिए माफी मांगी और वादा किया कि वे भविष्य में भ्रामक विज्ञापन नहीं दिखाएंगे।
पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल एक निर्देश जारी किया था कि कंपनी कोई भी भ्रामक विज्ञापन जारी नहीं करेगी। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि कंपनी ने इस निर्देश का पालन नहीं किया, जिसके कारण फरवरी में एक और सुनवाई हुई और रोक लगाने का आदेश दिया गया।
इस प्रकरण में, रामदेव की ओर से पेश होने वाले वरिष्ठ वकील बलबीर सिंह ने कोर्ट में दलीलें पेश कीं। उन्होंने कोर्ट से कहा कि पतंजलि ने अपनी गलती को स्वीकार किया है और बिना शर्त माफी मांगी है।
इस मामले के विकास पर नज़र रखने वाले लोगों की राय में, सुप्रीम कोर्ट का यह कदम उपभोक्ता संरक्षण के प्रति एक मजबूत संकेत है। यह दिखाता है कि अदालतें उपभोक्ताओं को भ्रामक जानकारी से बचाने के लिए सख्त कदम उठाने को तैयार हैं। इस मामले का परिणाम न केवल पतंजलि बल्कि सभी कॉरपोरेट संस्थाओं के लिए एक सबक के रूप में काम कर सकता है, जो भ्रामक विज्ञापनों का सहारा लेते हैं।