मणिपुर (नेहा): मणिपुर में जीवन अब एक अनिश्चितता के घेरे में बंध चुका है। “जान बचे तो वोट देने के बारे में सोचें,” यह विचार आज मणिपुर के निवासियों के जीवन का एक कड़वा सच बन चुका है। राज्य में चल रही हिंसा और लड़ाई ने लोगों को तलवार और बंदूकें लेकर सोने को मजबूर कर दिया है। यहाँ के लोगों का कहना है, “खाने को नहीं, चुनाव से क्या होगा।” मणिपुर में हिंसा और लड़ाई को एक साल होने को है और सरकार इसे रोकने में असमर्थ रही है।
लोगों का कहना है कि वे डर के साये में जी रहे हैं और अपने परिवारों को साथ रख पाने में असमर्थ हैं। बच्चों की पढ़ाई रुक गई है और व्यवसाय ठप्प पड़ गए हैं। “हम लोग 10 साल पीछे चले गए हैं,” यह उनका कहना है। उनका मानना है कि वे हर हाल में जी लेंगे, बस सरकार को शांति स्थापित करनी चाहिए। मणिपुर के आखिरी गांव मोरे में रहने वाले केशव, जो कि तमिल समुदाय से हैं, ने बताया कि म्यांमार बॉर्डर के पास स्थित उनका गांव कभी पर्यटकों से भरा रहता था, लेकिन अब वहां केवल सन्नाटा पसरा है। जले हुए घर और हर तरफ हिंसा के निशान दिखाई देते हैं। यह हिंसा मैतेई और कुकी समुदायों के बीच 3 मई 2023 से, यानी 11 महीने से चल रही है। मैतेई समुदाय इंफाल में रहता है जबकि कुकी समुदाय का घर हिल एरिया में है। दोनों समुदायों के बीच शांति बनाए रखने के लिए सेना के जवान तैनात हैं, ताकि दंगे न हों।
मणिपुर की यह स्थिति न केवल राज्य के विकास को प्रभावित कर रही है बल्कि यहाँ के निवासियों के जीवन की गुणवत्ता पर भी एक बड़ा प्रभाव डाल रही है। आवश्यकता है कि सरकार और समाज के सभी वर्ग मिलकर इस समस्या का समाधान खोजें ताकि मणिपुर एक बार फिर से शांति और समृद्धि की राह पर अग्रसर हो सके।