मुंबई: लगभग 19 वर्षों के बाद, मुंबई में दंगा भड़काने के आरोप में बुक किए गए 28 शिवसेना कार्यकर्ताओं और नेताओं को एक विशेष अदालत ने बुधवार को बरी कर दिया। अदालत ने यह फैसला अभियोजन पक्ष के मामले में कई विसंगतियों के चलते लिया।
इस मामले में बरी किए गए लोगों में शिवसेना (उद्धव बाल ठाकरे) के नेता अनिल देसाई और रविंद्र वायकर शामिल हैं, जो हाल ही में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना में शामिल हुए हैं।
मुंबई दंगा मामला: शिवसेना कार्यकर्ता बरी
विशेष अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि अभियोजन पक्ष इस बात को साबित करने में असफल रहा कि आरोपी किस तरह से दंगों में शामिल थे। अदालत ने पाया कि गवाहों की गवाहियां और सबूत पर्याप्त नहीं थे।
अदालत ने यह भी ध्यान दिया कि पुलिस द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों में अनेक त्रुटियाँ और विरोधाभास थे। इसके अलावा, अभियोजन पक्ष ने कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ और दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में विफल रहा, जिससे उनके मामले को कमजोर किया गया।
इस फैसले के साथ, शिवसेना के उन कार्यकर्ताओं को एक बड़ी राहत मिली है, जिन्होंने इतने वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ी। इस मामले की सुनवाई के दौरान, अदालत का कहना था कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सभी सबूत और गवाहियां इस बात को पुष्टि करने में नाकाम रहीं कि आरोपी इस घटना में सीधे तौर पर शामिल थे।
अदालत ने यह भी बताया कि कई गवाहों ने अपनी गवाहियों में विरोधाभासी बयान दिए हैं, जो कि मामले को और भी पेचीदा बनाते हैं। इस तरह के मामलों में जहां गवाहों की गवाहियां और सबूत कमजोर पड़ जाते हैं, वहां न्यायिक प्रक्रिया की गुणवत्ता पर प्रश्न उठाया जा सकता है।
इस प्रकरण से यह भी स्पष्ट होता है कि कानूनी प्रक्रियाओं में सुधार की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में इस तरह के मामलों में अधिक सटीकता और न्याय सुनिश्चित किया जा सके।