नई दिल्ली (उपासना): सुप्रीम कोर्ट ने बधिर और मौन आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए दिशानिर्देश तय करने की प्रक्रिया पर विचार करने का निर्णय लिया है। यह मुद्दा तब उठा जब ऐसी ही विकलांगता वाले एक व्यक्ति को जमानत देने से इंकार कर दिया गया, जिसपर दो नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार का आरोप है।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और के वी विश्वनाथन की पीठ ने निरीक्षण किया कि शीर्ष अदालत ने अब तक इस प्रकार के मुकदमों के लिए कोई विशेष दिशानिर्देश नहीं बनाए हैं। इस संदर्भ में, उन्होंने इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत पर बल दिया। वर्तमान में, बधिर और मौन आरोपियों के लिए न्यायिक प्रक्रिया में कई तरह की चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों को देखते हुए, न्यायालय का मानना है कि विशेष दिशानिर्देशों की स्थापना से न्याय प्रक्रिया में समानता आयेगी। इससे ऐसे आरोपियों को अपना पक्ष समझाने में सहायता मिल सकेगी।
पीठ ने यह भी जाहिर किया कि ऐसे आरोपियों के लिए मुकदमे की प्रक्रिया में संवेदनशीलता और विशेष व्यवस्थाओं की आवश्यकता होती है। उचित दुभाषिये और तकनीकी सहायता की प्राप्ति, इनके बिना न्याय की प्राप्ति में बाधा आ सकती है। न्यायालय ने आगे चर्चा की कि मुकदमे की प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। इसमें विशेषज्ञों की राय और अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अध्ययन शामिल है, जो कि इस प्रकार के आरोपियों के लिए न्याय प्राप्ति के मार्ग को सरल बना सकता है।
इस पहल का मुख्य उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में सभी के लिए समान अवसर प्रदान करना है। न्यायालय की इस पहल का स्वागत किया जा रहा है, क्योंकि यह न्याय की पहुंच को और अधिक व्यापक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अगर यह दिशानिर्देश लागू होते हैं, तो भारतीय न्याय प्रणाली में इसे एक ऐतिहासिक परिवर्तन के रूप में देखा जा सकता है। इससे न सिर्फ बधिर और मौन आरोपियों के लिए बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए न्याय की पहुंच में वृद्धि होगी।