मेलबर्न (उपासना): विश्व स्तर पर लगभग एक 20वां व्यक्ति अटेंशन-डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसआर्डर (एडीएचडी) से प्रभावित होता है। यह बचपन में उत्पन्न होने वाले सबसे आम न्यूरोडेवलपमेंटल विकारों में से एक है और अक्सर यह वयस्कता तक जारी रहता है।
जब व्यक्तियों में ध्यान की कमी और/या हाइपरएक्टिविटी और आवेगपूर्णता संबंधी समस्याएं विद्यालय, कार्यस्थल, सामाजिक स्थितियों और घर में उनके प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं, तब एडीएचडी का निदान किया जाता है।
कुछ लोग इस स्थिति को अटेंशन-डेफिसिट डिसआर्डर, या एडीडी कहते हैं। तो आखिर में एडीडी और एडीएचडी के बीच क्या अंतर है? वास्तव में, एडीडी एडीएचडी का एक पुराना नाम है जिसे आधिकारिक तौर पर अब नहीं पहचाना जाता है। आजकल, विशेषज्ञ इसे एडीएचडी के एक प्रकार के रूप में देखते हैं जहां मुख्य लक्षण ध्यान की कमी होती है, बिना हाइपरएक्टिविटी के।
इस भेद की समझ महत्वपूर्ण है क्योंकि इलाज के दृष्टिकोण से, दोनों के लिए उपचार के तरीके और प्रबंधन रणनीतियाँ भिन्न हो सकती हैं। जहां एडीएचडी में अक्सर व्यवहारिक थेरेपी, दवाएं और काउंसलिंग शामिल होती हैं, वहीं एडीडी में ध्यान केंद्रित करने के लिए अधिक विशिष्ट तकनीकों की आवश्यकता होती है।
एडीएचडी और एडीडी दोनों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है, विशेषकर शैक्षिक प्रणाली और कार्यस्थल पर। अक्सर ये विकार छात्रों और कर्मचारियों की कार्यक्षमता और उपलब्धियों को प्रभावित करते हैं, जिससे उनकी समग्र क्षमता पर असर पड़ता है।
उपचार के विकल्प और व्यक्तिगत निदान की गहराई से समझ उन व्यक्तियों के लिए बेहतर समर्थन और सहायता प्रदान कर सकती है, जिन्हें इसकी आवश्यकता है। विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित उचित थेरेपी और उपचार से न केवल व्यक्तिगत जीवन में सुधार हो सकता है, बल्कि इससे समाज के व्यापक दृष्टिकोण में भी सकारात्मक परिवर्तन आ सकते हैं।
अंत में, यह जानना महत्वपूर्ण है कि एडीएचडी और एडीडी की समझ और उपचार में निरंतर अनुसंधान और शिक्षा आवश्यक है। समुदाय और पेशेवरों को साझा करने वाली जानकारी और रणनीतियां इन विकारों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं, जिससे अधिक प्रभावी और संवेदनशील उपचार संभव हो सकता है।