शिमला (सरब): हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के नेता और राज्य मंत्री विक्रमादित्य सिंह हाई-प्रोफाइल मंडी लोकसभा चुनाव में अभिनेत्री कंगना रनौत से 74,755 वोटों से हार गए। एक अंग्रेजी समाचार पत्र के दिए इंटरव्यू में विक्रमादित्य सिंह ने मंडी से अपनी हार के बारे में बात की। एक ऐसी सीट जिस पर उनके माता-पिता, दिवंगत पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह और राज्य कांग्रेस प्रमुख प्रतिभा सिंह पहले भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। आइए जानते हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।
इंटरव्यू में विक्रमादित्य सिंह ने कहा, ”यह एक अच्छा अनुभव है, जो मुझे लंबे समय में मदद करेगा। मैं एक योद्धा हूं जो युद्ध के मैदान से नहीं भागता। हार-जीत खेल का हिस्सा है और मैं तब भी हार गया, जब हमारा वोट शेयर कई गुना बढ़ गया। 2019 में जब मतदान 73.6% था, तो कांग्रेस उम्मीदवार 4.05 लाख वोटों से हार गया। यहां तक कि मेरी मां प्रतिभा सिंह ने 2021 के उपचुनाव में जीत हासिल की, जब मतदाता मतदान 57.98% था, 8,766 वोटों से। इस बार मुझे 47.12% वोट मिले (मार्जिन 74,755 वोट था)। यह हार कोई झटका नहीं है।”
उन्होंने कहा कि अभी मैं केवल 34 वर्ष का हूं और मुझे लंबा सफर तय करना है। यहां तक कि मेरे माता-पिता, आदरणीय वीरभद्र सिंह और प्रतिभा सिंह को भी इस सीट से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन वे भी 3-3 बार जीते। साथ ही, मैं राज्य के पीडब्ल्यूडी और शहरी विकास मंत्री के रूप में अपने अभियान के दौरान मंडी के लोगों से किए गए अपने सभी वादों को पूरा करूंगा।
विक्रमादित्य ने कहा, ”चुनाव जीतना एक बात है, लेकिन चौबीसों घंटे वहां मौजूद रहना दूसरी बात है। अब जब वे (कंगना रनौत) निर्वाचित हो गई हैं, तो उन्हें वहां समय देना होगा। कंगना मंडी को कितना समय देती हैं, यह महत्वपूर्ण होगा। लेकिन समय ही बताएगा, क्योंकि एक अभिनेत्री और सेलिब्रिटी के तौर पर उनके पास बहुत सारी प्रतिबद्धताएं हैं। मैंने मीडिया के माध्यम से उन्हें बधाई दी है, अभी व्यक्तिगत रूप से बधाई देनी है।”
विक्रमादित्य सिंह ने आगे कहा कि मैंने कांग्रेस की विचारधारा को नहीं छोड़ा है। पहले दिन से ही मैंने कहा कि मैं राम मंदिर के पवित्रीकरण समारोह में शामिल होने गया था और अपने दिवंगत पिता के योगदान को उजागर किया था। अभियान के दौरान हमने जो किया वह कोई प्रचार शैली नहीं थी, बल्कि हिमाचल के लगभग 97% लोगों की भावना थी जो देव समाज (सनातन संस्कृति) का पालन करते हैं। मेरा मानना है कि मुझे इससे लाभ हुआ। जय श्री राम और हिंदुत्व भाजपा के ट्रेडमार्क नहीं हैं।
उन्होंने इंटरव्यू में यह भी बताया कि मैं अपनी हार की जिम्मेदारी लेता हूं। लेकिन हां, पार्टी भी मायने रखती है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मैं पहले भी कई मंचों पर कह चुका हूं कि मैंने न तो टिकट मांगा था और न ही चुनाव लड़ने में मेरी कोई दिलचस्पी थी। यह फैसला हमारी पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने लिया था, जिन्होंने मुझे मंडी से चुनाव लड़ने के लिए कहा था। दरअसल, सीएम ने भी मुझसे चुनाव लड़ने का आग्रह किया था। उन्होंने मुझ पर अपना भरोसा जताया।