बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में अकोला पश्चिम विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को रद्द कर दिया है। यह फैसला अकोला के निवासी अनिल दुबे द्वारा दायर एक याचिका पर आधारित है। याचिका में उल्लेख किया गया था कि नए विधायक के पास उनके कार्यकाल के लिए एक वर्ष से भी कम का समय होगा, जिससे उपचुनाव का आयोजन अव्यावहारिक और अनावश्यक है।
उपचुनाव पर रोक
इस फैसले को सुनाते हुए, न्यायमूर्ति अनिल किल्लोर और एमएस जावलकर की बेंच ने स्पष्ट किया कि अकोला पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में किसी भी प्रकार का उपचुनाव नहीं होगा। इस निर्णय के पीछे का कारण यह है कि नए सदस्य को अपने कार्यकाल के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाएगा, जिससे निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने में कठिनाइयाँ उत्पन्न होंगी।
महाराष्ट्र में अक्टूबर के महीने में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, इस फैसले को और भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अगर उपचुनाव होता, तो नए सदस्य को निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वर्ष से भी कम का समय मिलता, जिसे कोर्ट ने अनुचित माना।
जन प्रतिनिधित्व का संरक्षण
हाईकोर्ट का यह निर्णय जन प्रतिनिधित
ित्व अधिनियम की धारा 151(ए) के अनुसार आधारित है, जिसमें यह उल्लिखित है कि अगर निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव से नए सदस्य को पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है, तो उपचुनाव की प्रक्रिया को रोका जा सकता है। इस प्रकार, कोर्ट ने पाया कि इस मामले में उपचुनाव कराना उचित नहीं होगा।
यह फैसला 2019 में सावनेर निर्वाचन क्षेत्र के मामले में हाईकोर्ट द्वारा दी गई व्याख्या के अनुरूप है। उस समय भी, हाईकोर्ट ने उपचुनाव को रोकने का निर्णय लिया था, जब नए सदस्य के पास अपने कार्यकाल के लिए एक वर्ष से कम का समय था। इस प्रकार, वर्तमान निर्णय उसी सिद्धांत का पालन करता है।
अकोला पश्चिम विधानसभा सीट पिछले साल के अंत में मौजूदा विधायक की मृत्यु के बाद खाली हुई थी। इसके बाद, चुनाव आयोग ने मार्च के मध्य में उपचुनाव कराने के लिए अधिसूचना जारी की थी। हालांकि, इस फैसले के बाद, उपचुनाव की प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया है।
इस निर्णय को सुनने के बाद, अकोला के निवासी और याचिकाकर्ता अनिल दुबे ने अपनी संतुष्टि व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इस फैसले से न केवल सरकारी संसाधनों की बचत होगी, बल्कि यह निर्वाचन क्षेत्र के हित में भी है। उन्होंने आगे कहा कि अगले विधानसभा चुनावों में निर्वाचन क्षेत्र के नागरिकों को अपने प्रतिनिधि का चुनाव करने का पूरा अवसर मिलेगा, जिससे वे एक नए और पूर्ण कार्यकाल के लिए उपयुक्त प्रतिनिधि चुन सकेंगे।
इस निर्णय के बाद, महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में भी चर्चा का विषय बना हुआ है। कई राजनीतिक विश्लेषकों और नेताओं ने इसे न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता और जनहित में लिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय के रूप में सराहा है। इससे उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि राजनीतिक प्रक्रियाओं में सार्थकता और प्रभावीता को सुनिश्चित करने के लिए जुडिशियल इंटरवेंशन आवश्यक हो सकता है।
सामाजिक मीडिया पर भी इस निर्णय का व्यापक समर्थन देखने को मिला है। आम नागरिकों ने इसे न्याय की जीत के रूप में देखा और कहा कि यह फैसला उनकी उम्मीदों के अनुरूप है। कई लोगों ने इसे एक ऐतिहासिक निर्णय के रूप में भी माना, जिससे भविष्य में इसी प्रकार के मामलों में न्यायिक संस्थानों की भूमिका को मजबूती मिलेगी।