कोलकाता: लोकसभा चुनावों के पहले चरण में अब जबकि मात्र दो सप्ताह शेष बचे हैं, पश्चिम बंगाल भर में चुनावी ग्राफिटी और दीवार चित्रण आम हो गए हैं, जो वोटर्स का ध्यान खींचने में इसकी बेजोड़ शक्ति को प्रदर्शित करते हैं।
चुनावी ग्राफिटी का जादू
सिलीगुड़ी में, तृणमूल कांग्रेस द्वारा बनाई गई एक भित्तिचित्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे दिखने वाले एक चरित्र को भगवान राम द्वारा सावधानी बरतने और अपने योग्यता पर चुनाव जीतने की सलाह दी गई है।
कोलकाता के जादवपुर में सैकड़ों मील दूर, सीपीआई(एम) की छात्र शाखा एसएफआई द्वारा बनाई गई एक ग्राफिटी में टीएमसी को संदेशखाली के “राक्षस” और बीजेपी को “डाकू” के रूप में तुलना की गई है, जिसमें वोटर्स से दोनों को अस्वीकार करने का आग्रह किया गया है।
चुनावी प्रचार का नया आयाम
बंगाल की दीवारें चुनावी मौसम में रंगीन हो उठी हैं। इन दीवार चित्रणों और ग्राफिटी से न केवल राजनीतिक संदेशों का प्रसार होता है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर भी प्रकाश डालते हैं। चुनावी ग्राफिटी कला का यह रूप वोटर्स के बीच संवाद स्थापित करने का एक अनोखा माध्यम बन गया है।
इन दीवारों पर बनी चित्रकारी न सिर्फ राजनीतिक दलों के संदेशों को उजागर करती है, बल्कि इससे लोगों में चुनावी चेतना और जागरूकता भी बढ़ती है। ये ग्राफिटी और चित्र विविध रंगों और शैलियों में बनाए जाते हैं, जिससे इनका आकर्षण और भी बढ़ जाता है।
बंगाल की चुनावी कला का महत्व
इस तरह की ग्राफिटी और दीवार चित्रण कला न केवल चुनावी प्रचार का एक अहम अंग है, बल्कि यह राजनीतिक और सामाजिक संदेशों को व्यक्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम भी है। यह विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच संवाद और बहस को भी बढ़ावा देता है।
बंगाल की यह चुनावी ग्राफिटी न सिर्फ चुनावी प्रचार के परंपरागत तरीकों को चुनौती देती है, बल्कि यह राजनीतिक संवाद के नए आयामों को भी खोलती है। इससे वोटर्स में एक नई जागरूकता और चेतना का संचार होता है, जो लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
समापन
पश्चिम बंगाल में चुनावी ग्राफिटी और दीवार चित्रण की यह अनूठी परंपरा न केवल राजनीतिक संदेशों को प्रसारित करती है, बल्कि यह सांस्कृतिक विरासत और कलात्मक अभिव्यक्ति का भी प्रतीक है। इसकी अद्वितीय शक्ति और प्रभाव लोकतंत्र के महत्व को रेखांकित करती है, जिसे बंगाल की दीवारें प्रतिबिंबित करती हैं।