नई दिल्ली (किरण): रिजर्व बैंक ने हालिया मीटिंग में संकेत दिया था कि दिसंबर में रेपो रेट यानी नीतिगत ब्याज दरों में कटौती हो सकती है। इससे सस्ते होम लोन और ऑटो लोन की उम्मीदें भी बढ़ गई थीं। लेकिन, सोमवार को जारी खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अब ब्याज दरें घटने का इंतजार बढ़ सकता है। SBI रिसर्च का कहना है कि सितंबर में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ने से आरबीआई लंबी अवधि तक रेपो रेट पर तटस्थ रुख अपना सकता है। अगर उसे रेपो रेट में कटौती करनी पड़ी, तो इसकी वजह भी मुद्रास्फीति ना होकर विकास दर होगी। दरअसल, रेपो रेट में कटौती न करने से इकोनॉमिक गतिविधियां सुस्त हो रही हैं। इसलिए आरबीआई के सामने महंगाई और ब्याज दरों को एकसाथ साधने की चुनौती है।
महंगाई दर मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल से बढ़ी है। खाद्य पदार्थों में सब्जियों की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और कुल मुद्रास्फीति में इसने 2.34 प्रतिशत का योगदान दिया। ग्रामीण और शहरी खाद्य मुद्रास्फीति क्रमश: 9.08 प्रतिशत और 9.56 प्रतिशत रही, जो यह दर्शाता है कि खाद्य कीमतें परिवारों के लिए चुनौती बनी हुई हैं। खासकर, सब्जियों के दाम चिंता बढ़ा रहे हैं। आलू, टमाटर और प्याज के दाम लगातार ऊपर बने हुए हैं। इससे खाद्य महंगाई नीचे नहीं आ पा रही है।
एसबीआई रिसर्च के मुताबिक, ग्रामीण मुद्रास्फीति में वृद्धि शहरी मुद्रास्फीति से अधिक बनी हुई है। साथ ही ग्रामीण और शहरी मुद्रास्फीति प्रवृत्तियों (लगातार 7वें महीने) के बीच अंतर में वृद्धि के परिणामस्वरूप ग्रामीण घरेलू कीमतें शहरों के मुकाबले अधिक हैं। हालिया एमपीसी मीटिंग में आरबीआई ने लगातार 10वीं बार रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर जस का तस रखा। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि हमारा ध्यान महंगाई को काबू में लाने पर बना हुआ है।