पालनपुर: गुजरात के बनासकांठा जिले के पालनपुर में एक सत्र अदालत ने गुरुवार को पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को 1996 के एक मामले में 20 वर्ष की जेल की सजा सुनाई, जिसमें एक वकील को फंसाने के लिए ड्रग्स प्लांट करने का आरोप था।
भट्ट को 1996 में एक राजस्थानी वकील को झूठा फंसाने का दोषी पाया गया था। उन्होंने दावा किया था कि पुलिस ने पालनपुर में एक होटल के कमरे से ड्रग्स बरामद किए थे, जहां वकील ठहरा हुआ था। उस समय भट्ट बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक थे।
पीछे का सच
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भट्ट को 20 वर्ष की सजा लगातार भुगतनी होगी, जिसका अर्थ है कि यह जामनगर हिरासती मौत मामले में उम्रकैद की सजा के अंत के बाद शुरू होगी।
यह मामला न केवल एक व्यक्ति की दुर्भाग्यपूर्ण कहानी है बल्कि यह न्यायिक प्रणाली में विश्वास को भी चुनौती देता है। एक ऐसा मामला जहां न्याय के नाम पर अन्याय किया गया।
संजीव भट्ट को जो सजा सुनाई गई है, वह उनके पेशेवर जीवन में एक बड़ा धब्बा है। उन्हें एक ऐसे अपराध के लिए दंडित किया गया है जिसे उन्होंने लगभग ढाई दशक पहले किया था।
इस निर्णय ने न्याय की खोज में लगे व्यक्तियों के सामने एक कठिन प्रश्न खड़ा किया है। क्या वास्तव में न्याय प्राप्त करने की कोई सीमा होती है? और क्या समय के साथ अपराधों का महत्व कम हो जाता है?
संजीव भट्ट के मामले ने इस बात को भी उजागर किया है कि किस तरह शक्ति के पदों पर बैठे लोग अपने निजी लाभ के लिए कानून का दुरुपयोग कर सकते हैं।
इस निर्णय के बाद, संजीव भट्ट के परिवार और समर्थकों के बीच निराशा की लहर है। उनके समर्थक इसे न्याय के नाम पर हुए एक बड़े अन्याय के रूप में देखते हैं।
आज, जब हम इस मामले पर विचार करते हैं, तो हमें न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है। क्या हम वास्तव में एक ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां न्याय सभी के लिए समान है?
इस घटना ने न केवल न्यायिक प्रणाली की साख को चुनौती दी है, बल्कि समाज के समक्ष यह प्रश्न भी खड़ा किया है कि शक्ति और अधिकार का दुरुपयोग किस हद तक संभव है। यह एक ऐसा प्रश्न है जो हम सभी को गहराई से विचार करने के लिए मजबूर करता है।