झज्जर (राघव): पेरिस ओलिंपिक में कांस्य पदक जीत झज्जर के गांव गोरिया की बेटी मनु भाकर ने निशानेबाजी ने भारत के 12 साल से चले आ रहे पदक के सूखे को खत्म कर दिया है। पिछले ओलिंपिक से पेरिस तक पहुंचने का मनु भाकर का सफर भी आसान नहीं रहा। मनु के पिता रामकिशन भाकर बताते हैं टोक्यो ओलिंपिक में मनु ने नहीं उसकी पिस्टल ने धोखा दिया था। दूसरी सीरीज में बीच में इलेक्ट्रॉनिक ट्रिगर में सर्किट की खराबी आ गई थी। यह एक कठिन समय था, क्योंकि तकनीकी गड़बड़ी का सामना करना पड़ा और करीब 22 मिनट तक शूटिंग नहीं कर पाईं। टोक्यो ओलिंपिक में पदक से चूकने की वजह से लंबे समय तक डिप्रेशन के दौर से गुजरीं। घर में शूटिंग छोड़ने तक का जिक्र होने लगा था। फिर मनु ने गीता पढ़ते हुए अपने मन को साधा और योग से तनाव दूर किया। दरअसल, यह एक लंबी प्रक्रिया है।
परिवार के सदस्य भी उसे गेम को लेकर ज्यादा कुछ नहीं कहते। क्योंकि, वह अपने खेल में परिपक्व है। परिवार से सभी उसे शांत मन से अपना नेचुरल गेम खेलने के लिए प्रेरित करते हैं। मनु को पढ़ने के अलावा योग एवं घुड़सवारी काफी पसंद है। घर की छोटी-छोटी एक्टिविटी में जब भी उसे समय मिलता है, वह उसे एन्जॉय करती है। पिता बताते हैं कि मनु ने कभी हौसला नहीं गंवाया। पेरिस ओलिंपिक में शामिल होने से पहले जमकर मेहनत की। 10 से 12 घंटे तक हर रोज अभ्यास करते हुए फिटनेस का भी पूरा ध्यान रखा। अब ओलिंपिक में पदक जीतने वाली देश की पहली महिला निशानेबाज बन गईं। उम्मीद है कि अभी शेष बचे इवेंट में भी वह मेडल लेकर आएगी।
जब भी मनु का कोई बड़ा मैच होता है तो उसके माता-पिता टीवी पर मुकाबला नहीं देखते। रविवार को भी फाइनल मुकाबला देखने की बजाय मनु के पिता रामकिशन व माता सुमेधा भाकर सूरजकुंड रोड पर स्थित इबीजा टाउन सोसायटी में टहल रहे थे। मोबाइल उनके हाथ में था और सोसायटी के वाट्सएप ग्रुप पर सूचना फ्लैश हुई कि मनु ने कांस्य पदक जीत लिया है और इसके बाद चारों ओर खुशियां ही खुशियां।