नई दिल्ली: कच्चतीवु द्वीप मुद्दे पर केंद्र सरकार के रुख में बदलाव पर विपक्ष ने सोमवार को जोरदार प्रहार किया। विपक्षी नेताओं ने 2015 के एक आरटीआई जवाब का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि 1974 और 1976 में हुए समझौते भारत की किसी भी भूमि को हासिल करने या उसे छोड़ने से संबंधित नहीं थे। उन्होंने पूछा कि क्या मोदी सरकार के रुख में यह “परिवर्तन” “चुनावी राजनीति” के लिए है।
कच्चतीवु पर केंद्रित विवाद
विपक्ष की यह प्रतिक्रिया विदेश मंत्री एस जयशंकर के उस दावे के बाद आई, जिसमें उन्होंने सोमवार को कहा था कि कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्रियों ने कच्चतीवु द्वीप के मामले में उदासीनता दिखाई और कानूनी विचारों के विपरीत भारतीय मछुआरों के अधिकारों को श्रीलंका को सौंप दिया।
जयशंकर की यह टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान के एक दिन बाद आई, जिसमें मोदी ने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया था कि नए तथ्य बताते हैं कि कांग्रेस ने “लापरवाही” से कच्चतीवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया।
विपक्ष ने इस मुद्दे को उठाकर केंद्र पर निशाना साधा और कहा कि अगर वास्तव में समझौते भारत की भूमि को न हासिल करने या न छोड़ने से संबंधित थे, तो मोदी सरकार के रुख में बदलाव का क्या आधार है? उन्होंने इसे चुनावी लाभ के लिए एक रणनीति के रूप में देखा।
यह पूरा विवाद कच्चतीवु द्वीप के आसपास घूमता है, जिसे भारत और श्रीलंका के बीच 1974 और 1976 में हुए समझौतों के तहत श्रीलंका को सौंप दिया गया था। विपक्ष का कहना है कि इन समझौतों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है और मौजूदा सरकार इसे अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है।
इस पूरे मामले में, भारतीय मछुआरों के अधिकारों की चिंता एक महत्वपूर्ण विषय बनी हुई है। जयशंकर के बयान और विपक्ष की प्रतिक्रिया ने इस मुद्दे को और भी गहराई से उजागर किया है, जिससे यह चर्चा का विषय बन गया है कि अंततः किसके अधिकार और हितों की रक्षा की जा रही है।