नई दिल्ली (राघव): लाल किला हमला मामले में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक की दया याचिका खारिज करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के फांसी के फैसले को बरकरार रखा है। करीब 24 साल पुराने मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरिफ को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसके बाद आरिफ ने राष्ट्रपति के समक्ष दया की अपील की थी।
पहले सुप्रीम कोर्ट ने आतंकी आरिफ की समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया और अब राष्ट्रपति मुर्मू ने उसकी दया याचिका अस्वीकार कर दी. ऐसे में सवाल उठता है कि पाकिस्तानी आतंकवादी आरिफ उर्फ अशफाक के पास क्या कोई कानूनी विकल्प बचा है? कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि आरिफ संविधान के अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचार का अधिकार) के तहत सजा में रियायत की मांग कर सकता है। वह मौत की सजा पर अमल में अत्यधिक देरी को आधार बनाते हुए याचिका दायर कर सकता है।
दरअसल, 22 दिसंबर, 2000 को आतंकियों ने लाल किला परिसर में घुसकर 7 राजपूताना राइफल्स यूनिट पर गोलीबारी की थी। इससे वहां तैनात 3 सैन्यकर्मियों की मौत हो गई थी। हमले के 4 दिन बाद आरिफ को गिरफ्तार किया गया था। आरिफ एक पाकिस्तानी नागरिक है और आतंकी समूह लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का सदस्य है। खबरों के मुताबिक, आरिफ अपने 3 दूसरे साथियों के साथ 1999 में भारत में घुसा था।