नई दिल्ली (राघव): दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने जांच की अवधि को 60 दिन का विस्तार दिया। दिल्ली पुलिस ने 90 दिन की मोहलत मांगी थी। उनकी 90 दिन की हिरासत अवधि 3 मार्च को समाप्त हो रही थी। इस मामले में उन्हें 4 दिसंबर 2024 को गिरफ्तार किया गया था। बता दें जब बाल्यान ने अदालत से जमानत मांगी थी तो दिल्ली पुलिस ने बाल्यान की जमानत याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया था कि बाल्यान की गैंगस्टर कपिल सांगवान उर्फ नंदू के साथ सांठगांठ है। पुलिस के अधिवक्ता ने कोर्ट में दलील दी थी कि मामले के सह-आरोपित रितिक उर्फ पीटर और सचिन चिकारा ने कबूल किया है कि बाल्यान सांगवान के संगठित अपराध सिंडिकेट में एक मददगार और साजिशकर्ता था और उसने अपराध करने के बाद अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए सिंडिकेट के एक सदस्य को रुपये मुहैया कराए थे।
वहीं पर इस पूरे मसले पर नरेश बाल्यान की तरफ से पेश अधिवक्ता एमएस खान ने तर्क देते हुए कहा था कि प्राथमिकी में कोई नया अपराध नहीं है। संगठित अपराध आईपीसी के तहत अन्य अपराधों से अलग है। वकील ने तर्क दिया कि मकोका के तहत प्राथमिकी संगठित अपराध के खिलाफ नहीं है, यह कपिल सांगवान के नेतृत्व वाले संगठित अपराध सिंडिकेट के खिलाफ है। अधिवक्ता ने तर्क दिया गया कि गैरकानूनी गतिविधियां, संगठित अपराध और संगठित अपराध सिंडिकेट जारी है। अधिवक्ता ने दलील दी कि पुलिस एक वीडियो क्लिप पर भरोसा कर रही है।
उनका दावा है कि यह वीडियो क्लिप उन्हें अगस्त 2024 में इस FIR के दर्ज होने के बाद मिली थी, पुलिस ने अदालत को गुमराह किया है और सबूत छिपाए हैं। जबकि यह क्लिप अगस्त 2023 से है। बाल्यान के वकील ने आगे तर्क देते हुए कहा था कि सह-आरोपितों के बयान की सत्यता की जांच मुकदमे के समय की जानी चाहिए, जमानत देते समय नहीं। उन्होंने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ कुछ नहीं हैं, कोई संगठित अपराध नहीं है। मकोका मामले में गिरफ्तारी के बाद से बाल्यान न्यायिक हिरासत में है।