नई दिल्ली (हेमा)- सुप्रीम कोर्ट ने परामर्शदाता जैसी सलाह देते हुए कहा कि सहनशीलता और सम्मान एक अच्छे विवाह की नींव हैं और छोटे-मोटे झगड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए। अदालत की यह टिप्पणी एक महिला की ओर से अपने पति के खिलाफ दायर दहेज-उत्पीड़न के एक मामले को रद्द करते हुए आई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘एक अच्छे विवाह की नींव सहिष्णुता, समायोजन और एक-दूसरे का सम्मान करना है। एक-दूसरे की गलतियों को एक निश्चित सीमा तक सहन करना हर विवाह में अंतर्निहित होना चाहिए. छोटी-मोटी नोक-झोंक, छोटे-मोटे मतभेद सांसारिक मामले हैं और इन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए। जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं और इसे किसी तरह भी नष्ट करना उचित नहीं है।’’
न्यायालय का यह अवलोकन उस फैसले में आया है, जिसके जरिए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के एक संबंधित आदेश को रद्द कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने पत्नी की दर्ज आपराधिक याचिका को निरस्त करने संबंधी पति की याचिका खारिज कर दी थी। पति ने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी थी।
अदालत ने कहा कि कई बार, एक विवाहित महिला के माता-पिता और करीबी रिश्तेदार बात का बतंगड़ बना देते हैं और स्थिति में हस्तक्षेप करने और शादी बचाने के बजाय वे ऐसे कदम उठाते हैं कि छोटी-छोटी बातों पर वैवाहिक बंधन पूरी तरह नष्ट कर देते हैं। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि अगर पति-पत्नी के बीच सुलह की उचित संभावना होती भी है तो मामला पुलिस के पास ले जाकर इसे समाप्त कर लिया जाता है। अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवादों में मुख्य पीड़ित बच्चे होते हैं।
कोर्ट ने कहा, ‘‘पति-पत्नी अपने दिल में इतना जहर लेकर लड़ते हैं कि वे एक पल के लिए भी नहीं सोचते कि अगर शादी खत्म हो जाएगी तो उनके बच्चों पर क्या असर होगा। जहां तक बच्चों के लालन-पोषण की बात है तो तलाक एक बहुत ही संदिग्ध भूमिका निभाता है।”
कोर्ट ने आगे कहा, ‘हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसका एकमात्र कारण यह है कि पूरे मामले को ठंडे दिमाग से संभालने के बजाय, आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से एक-दूसरे के लिए नफरत के अलावा कुछ और नहीं मिलेगा। पति और उसके परिवार के पत्नी के साथ वास्तविक दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मामले हो सकते हैं। इस तरह के दुर्व्यवहार या उत्पीड़न का स्तर अलग-अलग हो सकता है।” अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवादों में पुलिस तंत्र का सहारा अंतिम उपाय के रूप में लिया जाना चाहिए।