नई दिल्ली (राघव): सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेजों के मामले में प्रवर्तन निदेशालय को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय से पूछा क्या एजेंसी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेजों को आरोपी को देने से इनकार करना उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है?
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दस्तावेजों की आपूर्ति से संबंधित अपील पर सुनवाई के दौरान प्री-ट्रायल चरण में पीएमएलए का जिक्र हुआ। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के उनके समकक्ष हेमंत सोरेन, आप नेता मनीष सिसोदिया और बीआरएस नेता के कविता सहित शीर्ष राजनेताओं को इस कानून के तहत गिरफ्तार किए जाने के बाद कई हाई-प्रोफाइल मामलों में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) सुर्खियों में आ गया है। बार एंड बेंच अनुसार, मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पूछा कि क्या आरोपी को सिर्फ तकनीकी आधार पर दस्तावेज देने से मना किया जा सकता है? जस्टिस अमानुल्लाह ने पूछा कि सब कुछ पारदर्शी क्यों नहीं हो सकता?
गौरतलब है कि कई हाई-प्रोफाइल विपक्षी नेताओं को भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत केंद्रीय एजेंसियों द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद पीएमएलए बार-बार जांच के दायरे में आया है। पिछले महीने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि मनीष सिसोदिया के फैसले पर भरोसा करते हुए हमने कहा है कि पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) में भी जमानत एक नियम है और जेल अपवाद है। पीठ ने पीएमएलए की धारा 45 का हवाला दिया जिसमें जमानत के लिए दोहरी शर्तों का उल्लेख है – प्रथम दृष्टया यह संतुष्टि होनी चाहिए कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है और जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है। अदालत ने कहा कि धारा 45 में केवल इतना ही कहा गया है कि जमानत के लिए शर्तें पूरी होनी चाहिए।