देहरादून (नेहा): उत्तराखंड में वर्षा का बदला पैटर्न चुनौती बन गया है। अनियमित वर्षा से प्रदेश में आपदा की घटनाएं बढ़ गई हैं। इस वर्षाकाल में बदले पैटर्न का प्रभाव स्पष्ट देखने को मिला। कुछ क्षेत्रों में सामान्य से बेहद कम वर्षा तो कहीं-कहीं अतिवृष्टि से जनजीवन प्रभावित है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को इसका बदले पैटर्न के पीछे कारण माना जा रहा है। जो कि बीते शीतकाल में कम बारिश, ग्रीष्मकाल में अत्यंत भीषण गर्मी के बाद मानसून में अनियमित वर्षा के रूप में दिख रहा है। इससे मौसम विज्ञानियों की चिंता बढ़ी है।
देश के कुछ शोधार्थियों ने एक शोध में यह दावा भी किया है कि पिछले 40 वर्षों के दौरान उत्तराखंड के मौसम में व्यापक बदलाव आए हैं। मानसून की दस्तक के बाद उत्तराखंड में इस बार जुलाई और फिर अगस्त में भी कहीं कम तो कहीं अधिक वर्षा रिकार्ड की जा रही है। उत्तराखंड में इस बार वर्षाकाल शुरू होने के बाद जुलाई में प्रदेश में सामान्य से 20 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई। हालांकि, इसमें कुछ जिलों में बेहद कम वर्षा थी तो कहीं रिकार्ड वर्षा हुई। अब अगस्त में भी मौसम का पैटर्न इसी प्रकार का बना हुआ है। अब तक औसत वर्षा 11 प्रतिशत अधिक हुई है।
हालांकि, इसमें छह जिलों में सामान्य से कम वर्षा रिकार्ड की गई है, लेकिन शेष सात जिलों में वर्षा अधिक हुई है। इसके साथ ही जिलों के कहीं-कहीं अतिवृष्टि की स्थिति रही तो कहीं वर्षा हल्की बौछारों तक ही सिमटी रही। बागेश्वर में सर्वाधिक वर्षा सामान्य से 277 प्रतिशत अधिक हुई है। इसके अलावा चमोली में भी दोगुनी वर्षा हुई है। देहरादून में लगातार जुलाई के बाद अगस्त में भी सामान्य से 30 प्रतिशत अधिक वर्षा रिकार्ड की गई। दून में वर्षा का पैटर्न इस प्रकार बदल चुका है कि कई क्षेत्रों में आपदा जैसे हालात हैं। आमतौर पर दून में रिमझिम वर्षा कई घंटों तक होती थी। इसके अलावा वर्षा पाकेट में हो रही है, जिससे एक ही क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा होने से भारी नुकसान हो रहा है। देहरादून के ही एक क्षेत्र में एक घंटे में 70 मिमी वर्षा तो दूसरे क्षेत्र में एक घंटे में 30 मिमी वर्षा दर्ज की जा रही है। जो कि बारिश के बदले पैटर्न को दर्शाता है।