नई दिल्ली (किरण): कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई अत्याचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने डॉक्टरों की सुरक्षा पर चिंता जाहिर की। साथ ही कोर्ट ने डाक्टरों को सुरक्षा का भरोसा दिलाते हुए उनसे समाज और मरीजों के हित में काम पर लौटने की अपील भी की। हालांकि, विरोध प्रदर्शन कर रहे डॉक्टर्स काम पर वापस लौटने के मूड में नहीं दिख रहे।
डॉक्टरों के निकायों में से एक ऑल इंडिया रेजिडेंट्स एंड जूनियर डॉक्टर्स ज्वाइंट एक्शन फोरम ने कहा कि भले ही कोर्ट के इरादे नेक हैं लेकिन यह हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को प्रभावित करने वाली मूल समस्याओं का समाधान नहीं करता है। हमारा मुद्दा है कि दशकों से स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को नजरअंदाज किया गया है। आरजी कर मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंट डॉक्टरों ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वे फिलहाल एक कदम भी पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने कहा जब तक इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला नहीं सुना देती तबतक विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा। आईएमए ने एक केंद्रीय कानून की मांग की है जिसमें 2023 में महामारी रोग अधिनियम, 1897 में किए गए संशोधनों को शामिल किया जाए। आईएमए ने कहा कि अस्पतालों को अनिवार्य सुरक्षा अधिकारों के साथ अस्पतालों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे, सुरक्षा कर्मियों की तैनाती और प्रोटोकॉल का पालन किया जाना चाहिए।
ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ हुई अत्याचार पर चिंता जाहिर करते हुए कोर्ट ने ममता सरकार, पुलिस और अस्पताल प्रशासन को लताड़ लगाई। वहीं, कोर्ट ने 14-15 अगस्त की रात अस्पताल में भीड़ के घुसकर उपद्रव करने और अस्पताल की इमरजेंसी व घटनास्थल तक पहुंच जाने पर राज्य पुलिस की नाकामी पर भी ममता सरकार को आड़े हाथों लेते हुए पूछा कि आपकी पुलिस क्या कर रही थी। इस मामले की जांच के लिए कोर्ट ने नेशनल टास्क फोर्स बनाने का आदेश दिया। कोर्ट ने 22 अगस्त को सीबीआई स्टेटस रिपोर्ट भी तलब की है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कई सख्त टिप्पणी की है। सोशल मीडिया पर पीड़िता की पहचान उजागर किए जाने के मामले पर भी कोर्ट ने चिंता जाहिर की। कोर्ट ने पूछा कि पीड़िता की पहचान उजागर कैसे हुई?