नई दिल्ली (हरमीत): सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच इस बात पर विचार करेगी कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी को शून्य घोषित किए जाने के बाद गुजारा भत्ता का अधिकार है या नहीं और ऐसे मामलों में गुजारा भत्ता दिया जाएगा या नहीं दो जजों की बेंच के विरोधाभासी फैसलों को देखते हुए अब इस मामले को विचार के लिए तीन जजों की बेंच के पास भेजा गया है। इस मामले में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और 25 की व्याख्या का मुद्दा शामिल है जो वैवाहिक विवादों के दौरान अंतरिम और बाद में स्थायी गुजारा भत्ता से संबंधित है।
पिछले पांच फैसलों में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की दो पीठों ने कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी रद्द होने के बाद भी गुजारा भत्ता दिया जाएगा, जबकि अन्य पीठों के दो फैसलों में कहा गया है कि गुजारा भत्ता नहीं दिया जाएगा। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अदालत द्वारा रद्द किए गए विवाह में पत्नी के भरण-पोषण से संबंधित ऐसा ही एक मामला गुरुवार, 22 अगस्त को न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बालचंद्र वर्ले की पीठ के समक्ष सुना गया। पत्नी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावनी ने पीठ को बताया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत अमान्य घोषित विवाह पर गुजारा भत्ता देने के मामले में दो न्यायाधीशों की विभिन्न पीठों के परस्पर विरोधी फैसले हैं। ऐसे में अब इस मामले की सुनवाई तीन जजों की बेंच को करनी है. पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों के इस बयान को आदेश में दर्ज करने के साथ ही गुजारा भत्ता देने और न देने के संबंध में पिछले आदेशों को भी फैसले में दर्ज किया. विरोधाभासी फैसलों को देखते हुए न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति वार्ले की पीठ ने मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का आदेश दिया ताकि मुख्य न्यायाधीश उचित आदेश पारित कर सकें।